हम लिखें इससे पहले ही हम स्पष्ट कर दें कि हम ‘ सेकुलर ’ यानि कि धर्मनिरपेक्ष हैं। यह स्पष्ट करना निम्नलिखित कारणों से जरूरी हो जाता है: पहला कि यह सत्य है – हमारा मानना है कि इंसान को उसकी सोच एवं आचरण से बाँटना चाहिए न कि उसके भगवान या जन्म के अनुसार। और दूसरा कि आज के माहौल का कोई ठीक नही है – पता नहीं कि कौन आकर यह आरोप लगा दे कि आपका यह लेख तो भई समाज में सांप्रदायिक अलगाव पैदा करने की क्षमता रखता है। हमें जेल भेज दिया जाए या फिर हमारे घर पर लोग पत्थर फेंकें इससे पहले ही अग्रसक्रिय होते हुए हमने स्पष्टीकरण दे दिया। अब स्पष्टीकरण दे ही दिया है तो हम लेख के साथ आगे बढ़ते हैं। हमें पता नहीं कि ‘ माफियानामा ’ और ‘ माफीनामा ’ शब्द वाकई में हैं भी या नहीं - हमें बस यह पता है कि ‘ नामा ’ लगने से शब्द में वजन आ जाता है। सच पूछिए तो शब्दों के मामले में हमारे हाथ बचपन से ही तंग रहें हैं। यही कारण है कि कुछ दिन पहले जब ‘ सैंड माफिया ’ सुना तो चक्करघिरनी खा गए – ड्रग माफिया सुना था ; रियल स्टेट माफिया सुना था ; एजूकेशन माफिया सुना थ ; पर रेत जैसी तुच्ची चीज में...