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Showing posts from September, 2013

हम सोचते हैं (भाग 4) – बेनेफिट्स के मायने

सच कहें तो हमें लगता है कि ‘ सोशल नेटवर्किंग ’ मानव सभ्यता की अब तक की सबसे क्रांतिकारी ईजाद है। बस कुछ सोचा ही कि वह फुर्र से हमारे जानने वालों को पता चल जाता है। सोच तो प्रकाश से भी ज्यादा तेज हो सकती है - ‘ सोशल नेटवर्क ’ उसमें भी बूस्टर लगा रहा है। नए मानव समाज की रचना में फेसबुक , ऑरकुट , ट्विटर इत्यादि अहम भूमिका निभा रहे हैं – और वैसे तो इनका योगदान नव युगीन क्रांतियों में भी खूब रहा है पर इस लेख के लिए हम अपने आप को ‘ सोशल नेटवर्क ’ के मूल फायदे तक ही सीमित रखेंगे – ‘ विचारों की निर्विध्न अभिव्यक्ति ’ । हमें ‘ विचारों की निर्विध्न अभिव्यक्ति ’ एक अद्भुत सोच लगती है। यह आपको अकल्पनीय रूप से सबल बनाती है – इतना कि सरकारें भी इससे हिलने लगीं हैं (सोचिए पुराणों के समय अगर सोशल नेटवर्क होता तो इंद्र का सिंहासन तो सदैव ही हिलता रहता)। यही कारण है कि फेसबुक पर हम अपने मित्रों के ‘ स्टेटस मैसेजस ’ पढ़ने के लिए लालायित रहते हैं – पता नहीं किसकी सोच से मानव जाति का भला हो जाए या फिर हमारे ही ज्ञान चक्षु खुल जाएँ। अभी हाल फिलहाल में ऐसे ही कुछ ‘ स्टेटस मैसेजस ’ ने हमारा