Skip to main content

नई कहानी – भगवान



रविवार का दिन था। सूरज की किरणें कोहरे की मोटी दीवार को काट कर धरती पर कुछ देर पहले ही पहुँची थी। और लगभग उसी समय वह अपने पापा को खोजने निकली। माँ, माँ। पापा कहाँ हैँ?
अभी अभी तो उठी है। अभी से पापा को तंग करना शुरु कर दे तू।
बताओ न पापा कहाँ हैं? प्लीज।
अब जब तुझे घर में नही दिख रहे तो छत पर ही होंगे। माँ ने प्यार से मुस्करा कर कहा।
इतना सुनना था कि वह छत की ओर लपकी। अपने नन्हें पैरों से वह जितनी तेजी के साथ चढ़ सकती थी उतनी तेजी सीढ़ियाँ नाप ली। देखा कि छत पर पापा कुर्सी लगाए आराम से किताब पढ़ रहे थे।


पापा यह गलत है। वह नजदीक आती हुई बोली।
पापा ने नजरे घुमाकर उसे देखा और मुस्कुराते हुए बोले – उठ गई मेरी बिटिया रानी। और क्या गलत है?’
आज संडे है। आज आप पूरा दिन मेरे साथ रहोगे।
तो अभी कहाँ नही हूँ? अभी भी तो तेरे साथ ही हूँ। उन्होने उसे गोद में उठा लिया।
अरे ऐसे नही। आज आप पूरा दिन मेरे साथ रहोगे – खेलोगे, घूमाने ले जाओगे और जो मैं कहूँगी करोगे।
अच्छा मेरी माँ। जैसी तेरी मर्जी। जरा नास्ता कर लें? उसके बाद खेला जाएगा और फिर हमलोग शाम में घूमने चलेंगे।
नास्ता बनने में अभी समय है। आज तो माँ भी स्लो रहती है। अभी ही खेलते हैं ना।
अभी!! कुछ देर बाद खेलते हैं ना। देखो कितनी अच्छी धूप निकली है। जरा बैठते है और आराम से धूप सेकते हैं।
इतना कहकर उसके पापा ने उसे बगलवाली कुर्सी पर बैठा दिया और अपनी किताब उठाकर पढ़ने लगे।
यह गलत है। आपको यह किताब पढ़नी है इसलिए आप मेरे साथ नही खेल रहे हैं।
अरे नही बेटा। यह तो मैं कई बार पढ़ चुका हूँ। इसके लिए तुम्हारे साथ न खेलूँ, ऐसा कैसे हो सकता है?’ कहते हुए पापा ने उसे फिर से गोद में उठा लिया।
यह कौन सी किताब है?’
तुम खुद देख लो। पापा ने उसे किताब दे दी। किताब की कवर पर नाम अंग्रेजी में लिखा था।
यह तो अंग्रेजी में है!!
तुम्हे अंग्रेजी तो आती है। पढ़ो और बताओ। पापा ने मुस्कराते हुए कहा।
उसने मुँह बिचकाया और पढ़ने की कोशिश करने लगी – H…O… L…Y… B… I… BLE
शाबाश। पापा ने खुश होते हुए कहा।
अरे इसका नाम क्या हुआ? यह तो बताओ।
इसका नाम हुआ होली बाइबिल। यह क्रिस्चंस की पवित्र किताब है।
तो आप इसे क्यों पढ़ रहे हो? हम क्रिस्चंस थोड़े ही है।
हा हा। बस ऐसे ही। भगवान की ही किताब है। पढ़ने में क्या जाता है?’
ठीक है। पर जब आपने पढ़ ही ली है तो मेरे साथ खेलो। चलो। इतना कहकर वह अपने पापा को खींचने लगी।
इस बार पापा भी उठ गए। चलो, क्या खेलें? छुपा – छुपी।
अरे नही। आप फिर कही जाकर सो जाओगे और मैं ऐसे ही खोजती रहूँगी। बिल्कुल नही।
तो फिर क्या खेलें?’
चक्करघिरनी खेलते हैं!!
अरे ना भई ना। यह भी कोई खेल है? हाथ पकड़ो और तेजी से घूमो। बिना सिर पैर का खेल है। मुझे तो चक्कर आता है।


कोई बहाना नही चलेगा। चक्करघिरनी ही खेलना होगा। इतना कहकर उसने अपने पापा का हाथ थामा और घूमने की जिद करने लगी। पापा के पास और कोई चारा नही था सिवाय इस खेल में शामिल होने के। और फिर क्या था – मस्ती का एक शमाँ बन गया। बाप बेटी हँसते खिलखिलाते, हाथ में हाथ थामे चक्करघिरनी लगाने लगे; उनकी आवाजें नीचे सुनकर माँ मंद मंद मुस्करा रही थी।
अब रूक जा बेटा। पापा थक गए है।
नही, नही। रूकना नही है। कितना मजा आ रहा है। और तेज, और तेज।
बेटा, पापा सच में थक गए हैं। रुक जा थोड़ा देर। पापा की साँस बहुत तेज थी। पर वह भी अपने पापा को जानती थी। उनसे बड़ा एक्टर दुनिया में कोई नही था। जब से देखा है तब से ही पता नही कितनी तरह की सूरत बनाकर उसको हँसाते रहते थे। और जब भी उससे बचना होता था तो कोई न कोई बहाना बनाकर, पीछा छुड़ा लेते और जाकर सो जाते। पर आज नही। आज संडे है। आज उसका दिन है।


और तभी सहसा उसके पैर जमीन से उठे, पूरा शरीर हवा में कुछ देर के लिए थरथराया और फिर एकाएक तेजी से जमीन की ओर लपका। वह जमीन पर तेजी से टकराने ही वाली थी कि पापा का शरीर सामने आया और वह उनके शरीर से ऐसे टकराई जैसे कि उछलकर गद्दे पर गिरी हो। पापा उसे लपेटे जमीन पर पड़े थे। पापा ने फिर कोई मजाक किया था जो उसे एकदम पसंद नही आया। उसे गुस्सा आ रहा था – वह डर गई थी। और यहाँ पापा उसे पकड़े आराम से जमीन पर लेटे हैं।


पापा यह गलत है। छोड़ो मुझे। उठो न। पर पापा तो हिल भी नही रहे थे। किसी तरह उनके गोद से निकली तो देखा कि उनका चेहरा पसीने से लथपथ है और लाल हो रखा है। आँखे बंद हैं। कुछ तो सही नही है। वह माँ को बुलाते नीचे की ओर भागी। माँ, देखो पापा को क्या हुआ है!!


उसके बाद सबकुछ बहुत तेजी से हुआ – माँ झट से उपर की ओर भागी; पापा को देख जोर से चिल्लाई; नीचे भागी; पड़ोस के अंकल्स आएँ; पापा को उठाकर ले गए; माँ भी रोती रोती साथ भागी; वह भी माँ के पीछे जाने को हुई तो पड़ोस की मीनू आँटी ने पकड़ लिया; बोली – बेटा, माँ – पापा जरूरी काम से बाहर गए हैं, तू मेरे साथ कुछ देर रूक जा। फिर दोनो मिलकर उनके पास चलेंगे।


उसे पता था कि उसके पापा की तबियत खराब है; उन्हे अस्पताल लेकर गए हैं। उसे यह भी लग रहा था कि शायद उसी की गलती से पापा की तबियत खराब हुई है। वह अगर जिद न करती तो पापा ठीक रहते। उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे; वह रो रही थी और उसे पता नही था क्या करना है। मीनू आँटी ने उसके आँसू पोछे और अपने घर लेकर गई। मन बहलाने के लिए टीवी पर कार्टून लगा पर आज कार्टून देखने का कोई मन नही था। उसका दिल तो बैठता ही जा रहा था।
कुछ देर में मीनू आँटी मैगी लेकर आई और साथ में बैठकर बहुत प्यार से खिलाने लगी।
तू परेशान मत हो बेटा। तेरे पापा ठीक हो जाएँगे। बस भगवान पर भरोसा रख। भगवान सब भला करेंग़े।
भगवान भला करेंगे?’
हाँ बेटा। वही सबकी रक्षा करता है। तुम्हारे पापा की भी करेगा।
उसे थोड़ा सुकून मिला। मैगी खाने के बाद आँटी के घर में रखे मंदिर के पास गई और हाथ जोड़कर बैठ गई। पूजा करना आता तो था नही; बस माँ को देखा था कभी कभी। हाथ जोड़े वह मन ही मन बुदबुदाने लगी – भगवान मेरे पापा को ठीक कर दो। सहसा उसकी आँखों से दो बूँद उभरे और गाल पर लुढ़क गए। आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बहती रही और वह न जाने कितनी देर वह उसी तरह बैठे रही और बैठे बैठे सो गई।
मीनू आँटी ने गोद में उठाया तब जाकर आँख खुली। शुरु में तो समझ ही न आया कि कहाँ हैं; फिर याद आया – पापा
हाँ, बेटा। पापा के पास ही चल रहे हैं।
कार में अधिकतर समय सभी चुप थे। बीच में अंकल ने आइसक्रीम के लिए पूछा पर उसने मना कर दिया। रास्ते में उसे जो भी मंदिर दिखता, वहाँ हाथ जोड़ मनाती - भगवान मेरे पापा को अच्छा कर दो


अस्पताल बड़ा था लेकिन साथ में उदास सी जगह लगा। माँ एक कुर्सी पर सिर झुकाए बैठी थी। वह माँ की ओर लपकी और चिपक गई। अजीब सा महसूस हुआ – उस पल में सुकून था; आश्वासन भी था; रोने का मन कर रहा था और लग रहा था कि रोई तो शायद माँ भी रो देगी। ऐसा लगा कि एकाएक वह थोड़ी और बड़ी हो गई। मुँह से सिर्फ इतना निकला - पापा?’
माँ ने उसका चेहरा प्यार से चूमा – तू घबरा मत। पापा ठीक हैं। बस कुछ दिन यहाँ रहेंगे और फिर हमारे साथ घर आ जाएँगे।
पक्का?’
पक्का। भगवान हमारे साथ हैं। वह सबका भला करते हैं।
उसे पापा से मिलना था पर वे किसी ऐसे रूम में थे जहाँ किसी को भी जाना मना था। वह माँ की गोद में बैठे रही। पास पड़ोस के लोग भी वहाँ थे। वही बैठे बैठे पता चला कि पापा का कोई बड़ा ऑपरेशन होना है और माँ और कुछ लोग रात में वहाँ रूकेंगे।
मैं भी यही रहूँगी, तुम्हारे साथ। उसने माँ से जिद की।
माँ ने प्यार से उसकी तरफ देखा – अगर तू यहाँ रहेगी तो घर कौन देखेगा। कोई चोर – वोर आ गया तो। तू मीनू आँटी के साथ रहना और घर देखते रहना।
उसे रूकने का तो मन था और जिद भी कर सकती थी पर माँ ने अब बड़ी जिम्मेदारी दे दी थी। उसे जाना पड़ेगा। जरा रात हो चली तो माँ ने मीनू आँटी से कहा – मीनू। अब इसे घर ले जाओ।


अगली सुबह आँटी ने प्यार से उठाया - उठ जा बेटा। स्कूल नही जाना।
स्कूल!! पर पापा?’
पापा अस्पताल में है तो तू क्या स्कूल नही जाएगी? आकर मेरे को सुनाएँगे कि मेरी बच्ची की पढ़ाई खराब कर दी।
स्कूल जाने का मन नही था पर फिर भी आँटी ने जबरदस्ती तैयार कर रवाना कर दिया।
स्कूल में, न जाने कैसे, सबको पापा की तबियत के बारे में पता था। कुछ टीचर्स ने रोक कर पापा के बारे में पूछा; यहाँ तक की गुरप्रीत मैम जो हमेशा उसे डाँटती रहती थी उन्होने भी प्यार से बात की। सभी ने कहा – भगवान सब अच्छा करेंगे


शाम में जब वह अस्पताल गई तो पता चला कि पापा का ऑपरेशन हो चुका था पर अभी स्थिति क्रिटिकल थी और उन्हे किसी ICU नाम की जगह में रखा था। उसे क्रिटिकल और ICU का तो मतलब नही पता था पर यह जरूर महसूस हो गया था कि पापा की तबियत अभी भी बहुत खराब है। माँ के चेहरे पर उदासी थी हालाँकि उसे देखकर वह मुस्कुरा ही रही थी।
माँ, पापा कैसे हैं?’
अच्छे हैं। सुबह तुझे खोज रहे थे।
तो मिलने चले?’
नही बेटा। अभी वह आराम कर रहे हैं।
नही!! मुझे उनसे मिलना है। अभी। कहकर वह रोने लगी।
माँ का दिल भी पसीज गया। गोद में उठाकर उसे ICU के दरवाजे पर ले गई। शीशे से बिटिया ने अपने पापा को देखा। वो सो रहे थे - उनके चेहरे पर बड़ा सा मास्क लगा था। उनको बहुत तकलीफ है यह पता चल रहा था। उनके रूम में बड़ी बड़ी मशीने लगी हुई थीं। पीं पीं की आवाजें आ रहीं थी - वह डर गई।
पापा ठीक होंगे ना माँ?’
हाँ बेटा। जरूर होंगे।


अगले कुछ दिन में पापा की स्थिति में बहुत ज्यादा कुछ बदलाव नही हुआ था। वह अभी भी ICU में ही थे। दूसरे शहर से चाचू और चाची आ गए थे। तो अब वह अपने ही घर में रह रही थी। माँ भी अब घर आने लगी थी। पर वह ज्यादातर समय सोयी ही रहती थी।


स्कूल जाने में अब उसे खराब नही लग रहा था बल्कि वह तो स्कूल जाना चाहती थी। कल ही उससे अदीरा ने कहा कि उसने अपने खुदा से उसके पापा के ठीक होने की दुआ माँगी है। उसने ही नही बल्कि उसकी सारी दोस्तो ने और जसप्रीत, अमित और रूबी ने भी उसके पापा के ठीक होने की प्रार्थना की थी। उसकी सबसे अच्छी दोस्त अद्विता ने उसे एक छोटे हनुमान जी की मूर्ति भी दी। अब स्कूल आते जाते, वह सिर्फ मंदिरों के सामने हाथ नही जोड़ती थी, बल्कि रास्ते में पड़नेवाले मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे पर भी अपने पापा के लिए प्रार्थना करती। पता नही कौन से भगवान पापा को ठीक कर दें।


पापा को अस्पताल गए आज 2 हफ्ते हो चुके थे – आज संडे था। माँ और चाचू अस्पताल गए थे। वह छत पर वहीं बैठी थी जहाँ उसके पापा गिरे थे। उसकी हाथों में अद्विता की दी हुई छोटे हनुमान जी थे। तभी चाची आकर उसके पास बैठ गई और उसके बालो पर हाथ फेरने लगी। उसकी आँखों में एकाएक आँसू आ गए। वह चाची से चिपक कर रोने लगी।
अरे पगली। ऐसे कहीं रोते हैं क्या? पापा तो ठीक हो रहे हैं। हो सकता है इसी हफ्ते अस्पताल से वापस आ जाएँ।
वह बहुत कुछ बोलना चाह रही थी – वह चाहती थी कि वो बोले कि पापा उसकी वजह से बीमार हुए हैं; वह चाहती थी कि वह बोले कि पापा के बिना उसे बिल्कुल अच्छा नही लगता - घर सूना सूना लगता है; वह चाहती थी कि वह बोले कि पापा का गाना सुने बिना उसे रात में ढ़ंग से नींद नही आती। पर उसकी जुबान से कुछ नही निकला सिर्फ पापा, पापा कहकर फफक फफक कर रोती रही। चाची ने उसे बड़ी मुश्किल से शाँत कराया।
शाम हो रही थी कि चाची ने उसे उठाया और गोद में भर लिया। क्या कह रही थी मैं सुबह कि तेरे पापा ठीक हो रहे हैं। अभी तेरे चाचू का फोन आया था – डॉक्टरों ने कहा है कि अब डरने की कोई बात नही है। एक दो दिन अस्पताल में और रखेंगे और फिर घर भेज देंगे।
उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। उसे समझ में नही आ रहा था कि वह क्या करे।
वह दौड़ी दौड़ी अपने घर के मंदिर के पास गई और बोली – थैंक यू भगवांन।


आज सब कोई पापा को घर लाए थे। घर आनेवालो का ताँता नही खत्म हो रहा था। मन कर रहा था कि सबको भगा दें – मेरे पापा को छोड़ दो सब। अभी अभी तो अस्पताल से आए हैं। अभी आराम करने दो। पर किसी से कुछ कहा नही क्योंकि सभी पापा को देखकर खुश थे; और सभी ने बहुत मदद भी की थी।
रात के 8 बजे के करीब घर खाली हुआ। अब सिर्फ पापा, मम्मी और चाचू – चाची थे। घर में खुशी थी।
चाचू ने कहा – आपको मिठाई नही खाना अभी – नही तो इतनी मिठाई है कि अगले एक हफ्ते तक हम और आप शर्त लगाकर भी बैठें तो खत्म नही हो। पापा धीमे से मुस्कुरा दिए।
इस अस्पताल के डॉक्टर्स अच्छे थे। उन्होने आपकी जान बचा ली। नही तो सभी बोल रहे थे कि बहुत मुश्किल ऑपरेशन था और बचने की उम्मीद कम थी। माँ बोली।
अरे पापा मेरी वजह से ठीक हुए हैं। पापा के लिए उसने इतनी प्रार्थना की थी – कोई और क्रेडिट लेकर कैसे जा सकता था।
बात तो इसने एकदम सही की है। ठीक तो हम अपनी बिटिया के वजह से ही हुए हैँ। पापा की आवाज में पहली बार पुरानी वाली खनक थी।
मैने हर रोज ना जाने कितनी बार भगवान को पापा को ठीक करने के लिए बोला। उन्होने ही पापा को ठीक किया है।
यह बात भी सही है। भगवान ना चाहे तो कोई क्या कर सकता है। थैंक यू बेटा।
वह चहक गई और पापा की बगल में जाकर बैठ गई। बोली – सिर्फ एक ही चीज समझ में नही आई।
क्या बेटा?’
यही कि किस भगवान ने आपको ठीक किया? किसने मेरी बात सुनी?’
तूने किससे किससे बात की?’
अरे यह हनुमान जी तो हैं ही। उसने उनकी मूर्ति अपनी हथेली पर सामने रख दी। और फिर शिव जी, राम जी, किशन भगवान से भी कहा। फिर अदीरा के भगवान को भी बोला। चर्च के सामने से भी जब गुजरती थी तब भी बोलती थी और वाहे गुरु जी को भी बोला।
बाप रे बाप इतनी जगह गई तुम मेरे लिए?’ माँ और चाचू, चाची अब हँस रहे थे।
और नही तो क्या? पर इनमें से आपको ठीक किसने किया?’
भगवान ने ही। बेटा, भगवान तो एक ही है। हम इनको अलग अलग रूप में पूजते हैं – तो चाहे यह हनुमान जी हो या फिर अदीरा के भगवान या फिर वाहेगुरु। सब एक ही भगवान का रूप हैं।
ऐसा कैसे? एक ही भगवान के अलग अलग रूप कैसे? और सब अलग अलग भगवान को क्यों मानते हैं?’
यह तो बड़ा कठिन सवाल पूछ लिया तुमने। अच्छा चलो कोशिश करते है। तुम कौन हो?’
मैं मैं हूँ। और कौन हूँ?’
हा हा। तुम मेरी कौन हो?’
मैं आपकी बेटी हूँ।
और माँ की?’
बेटी।
और चाचू चाची की?’
भतीजी।
और अद्विता की?’
दोस्त।
पर तुम तो तुम हो। फिर सबके लिए अलग क्यों?’
क्योंकि सबके लिए मैं एक थोड़े ही हो सकती हूँ।
बिल्कुल सही। उसी तरह से हो सकता है कि भगवान एक होकर भी सबको अलग अलग रूप में दिखते हो।
हम्म!! यह तो हो सकता है।
तो फिर क्या समझ में आया?’
चाहे किसी को भी मानो, भगवान तो एक ही है।
बहुत अच्छे। याद रहेगा?’
यह तो आसान है। याद रहेगा। अच्छा यह बताओ कि आप पूरी तरह से ठीक कब होगे?’
क्यों?’
तभी तो आप मुझे घुमाने ले जाओगे।
हा हा। जल्दी बेटा, जल्दी।
इतना सुनते ही वह अपने पापा के बगल में लेट गई और धीरे से कहा – आई लव यू पापा।
पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा – आई लव यू टू बेटा।

Comments

Unknown said…
Very nice and heart touching story
Unknown said…
Heart touching story.
Pankaj Sharma said…
This is a really nice piece. Emotional, Happy Ending and With a very strong and relevant message especially in times like these. But if I am forced to pick up holes, a couple of things which could have made it more impactful, a) there are some spelling errors like "naasta" should be "naashta" and a few more, b) a bit more editing which could have made this tighter. Otherwise, it is just perfect. Keep it up Rahul and write more!
Unknown said…
A good simple story with a string message.

Popular posts from this blog

The Institute: Another Home Dark clouds gathered and decided to show their strength to the sun. As the sky turned dark and wind and rain joined the coalition of clouds, our cab raced through the streets of Calcutta. The sun was overpowered and I and my brother prayed to reach our destination before the rain hits the accelerator button. That was two years ago and I was on my way to join one of the premier institutes in India for my postgraduate studies. I was in awe with everything associated with the institute. At the same time I was a bit nervous and perhaps petrified with the thought of matching the wits of some of the best brains in the country for two years. My brother, on contrary, was happy, excited and perhaps proud of the achievement of his brother. After the drive of about an hour my brother pointed out “Look we have arrived.”. There was a pang within me as I smiled and watched nervously at the board of the institute. As we entered through the gate, the two large lakes on eit
Films of 2008 Part I: My top 10 Some films listed here may not be of Indian origin/ production but are relevant in Indian context. The ordering is in no particular order. You may rearrange them according to your preferences. A Wednesday: This film vents out the frustration of ‘Common Man’. Pitted against each other the two stalwarts of Indian film Industry, Naseeruddin Shah and Anupam Kher elevated the movie multifold. Jimmy Shergil shined in a brief role. First time director Neeraj Pandey, weaved an interesting tale into an engaging screenplay. The film had its share of flaws but it was able to highlight the message it wanted to deliver. Jodha Akbar: A magnum opus which could have been a classic was reduced to an above average cinematic experience by the dragging and long screenplay. But the movie had its moments. The sheer chemistry between the lead pair made the love story engaging and endearing. The opulent sets and clothes brought the desired period look. A R Rahma
Dil Chhata Hai Author Speak: The credit to the title goes to my colleague and friend Sayan. Also, let me warn you at the very beginning that things can go horribly wrong in this small piece of ‘art’ – after all this is my first attempt to narrate a tale of love. The narration is based on real events with suitable changes to cater to the tastes of targeted audience. It is amazing what nature can do to the feelings and emotions of people. And weather plays an important role in this ‘buzzing business’ of nature. Cinema (especially Indian cinema) has exploited this particular aspect of nature very well. Thus there is a thunderstorm with lightening in the background when the hero is angry (or for that matter when Bhisma is taking his ‘famous’ oath) and dark clouds generally refers to something bad which is going to occur (Hollywood has mastered this art with its Sci-fi movies) and sunlight coming out amidst cloud shows ray of hope. Also a winter (with snowy weather) generally refers to the