हम देख रहें हैं कि
आजकल लोगों में इतिहास के प्रति रुझान बढ़ रहा है। एक हमारा समय था कि लगता था कि
इतिहास से सिर्फ हमारा और कुछ गिने चुने लोगों का ही लगाव है। हमारा लगाव इस कदर
था कि ग्यारहवीं का फार्म भरते तक पिताजी ने छूट दी थी कि आर्टस लें या साईंस (और
इसके लिए हम उनके तहेदिल से शुक्रगुजार हैं)। पर हमने विज्ञान को चुना – सोचा
इतिहास तो जो बनना था बन गया अब हमारे इतिहास बनाने का समय है। वैसे भी पिताजी
हमेशा से चाहते थे (और शायद अभी भी चाहते हैं) कि उनका बेटा इतिहास रचें। इस
क्षेत्र में हमें अपना जलवा दिखाना बाकी है पर हाल फिलहाल में जो घटित हो रहा है उससे
हम बौखला से गए हैं।
अगर देखा जाए तो बात
कुछ भी नही है – एक व्यक्ति विशेष अपने प्रियजनों एवं शुभचिंतकों की अभिलाषाओं को
ध्यान में रखते हुए नया इतिहास रचने चला है। हमें अभी तक इतिहास पर उनके वक्तव्यों
को सुनने का सौभाग्य तो प्राप्त नही हुआ पर हमने पढ़ा जरूर है। पढ़कर लगा कि
उन्होनें असली मुद्दा पकड़ लिया है – इतिहास कभी भी आम वर्ग में प्रचलित इसलिए नही
हुआ क्योंकि वह सुरुचिकर नही रहा। अगर लोगों को इतिहास पढ़ाना है तो उसे सुरुचिकर
बनाना होगा – उसमें कुछ मसाले डालने होंगे। बस यही कवायद थी लेकिन ‘कुछ संदिग्ध तत्वों’ ने उसे तिल का ताड़ बना दिया। अब बताइए भला आपको
या हमें क्या फर्क पड़ता है कि तक्षशिला बिहार में है या पाकिस्तान में या फिर
चंद्रगुप्त मौर्य ने ईसा पूर्व मौर्य काल में राज किया या फिर ईसा के बाद गुप्त
काल में? राज तो भारत पर ही किया और मगध से ही किया। इन सब चीजों में मजा बहुत आता है
लेकिन – सोचिए बेचारे पाकिस्तान की क्या हालत हुई होगी जब यह विचारक तक्षशिला उनसे
लेकर चलते बने। उन्हे डर सता रहा होगा कि कहीं अगले वक्तव्य में हरप्पा और
मोहनजोदारो न हाथ से निकल जाए।
इतिहास में रुचि तब
और बढ़ती है जब वह निकट काल का हो – इसीलिए इन्होनें शायद पंडित नेहरू और सरदार पटेल
का उल्लेख किया होगा। हमें सच में नही पता था कि नेहरू सरदार पटेल की अंतिम यात्रा
में शरीक नही हुए थे वर्ना आपको लगता है कि हम बचपन में उन्हें चाचा नेहरू कहकर
बुलाते या कभी बाल दिवस मनाते? हमें कभी मौका न मिला कि हम नेहरू या पटेल के करीबी रहें
(पैदा ही 80 के दशक में हुए) पर हमें लगता है कि वे दोनों भी ऊपर कहीं कसमसा रहें
होंगे कि अब उन्हें लेकर नया इतिहास रचने की कवायद क्यों शुरु हो गई।
अभी इन विशिष्ट
इतिहासकार का व्याख्यान कुछ महीनों तक चलता रहेगा और हम सभी उसे पढ़ते/ सुनते
रहेंगे। हम आशवस्त हैं कि हमारे ज्ञान में निश्चित बढ़ोतरी होगी – हमारा विशेष
ध्यान हालाँकि 2002 के अध्याय और उसके विश्लेषन पर रहेगा जिनके ये ‘एक्सपर्ट/ विशेषज्ञ’ माने जाते हैं।
अगर आपको लगता है कि
बाजार में सिर्फ यही एक इतिहासकार हैं तो आप भूल कर रहें हैं – हालाँकि इतिहास के
मामले में वे सभी इनके सामने बस चंगू – मंगू ही है। बस एक है जो कभी कभार कुछ
टक्कर दे जाता है। क्योंकि वह एक राजसी परिवार से हैं, वह उस परिवार के इतिहास के
विशेषज्ञ तो हैं ही। अभी हाल ही में एक वर्णन में उन्होनें याद दिलाया कि इस
देश के ताजा इतिहास का एक अहम एवं अच्छा अंश उनके परिवार ने लिखा है और कैसे उसे
रचते रचते उनके पिता एवं दादी को मार डाला गया। वह यह भी बताने से न चूके कि वह भी
इतिहास रचने के लिए लालायित हैं चाहे उन्हे भी क्यों न मार दें - मानों इतिहास
लिखने वाले को मार देने की रस्म ही हों।
गौर कीजिएगा तो पाईएगा कि सभी अपने अपने
हिसाब से इतिहास पढ़ा रहे हैं – कुछ सही, कुछ गलत पर चुनिंदा इतिहास। संपूर्ण और तथ्यप्रधान
इतिहास प्रस्तुत करने का न किसी के पास समय है न जरूरत। इन लोगों से प्रेरित होकर सभी
अब अपना अपना इतिहास बनाने लग गए हैं।
अभी कुछ ही दिनों पहले हमारे एक प्रिय
मित्र ने घोषित किया कि भारत सदैव से ही हिंदू राष्ट्र रहा है।हमसे रुका न गया और हमने
पूछ ही लिया ‘पर सिंधु घाटी सभ्यता के लोग तो हिंदू न थे?’
‘वे भी थे – भूल गए कि वे भी शिव की आराधना करते थे।’ हमारे जहन में उस काल के
मुद्राओं पर अंकित ‘पशुपतिनाथ’ की छवि आ गई। इतिहास का यह विवेचन
हमें काफी रोचक लगा क्योंकि अबतक तो आमतौर पर यही सहमति थी कि आर्य सभ्यता ने अपने
कुछ भगवान सिंधु घाटी सभ्यता से भी उठाए होंगे। पर हमें यह कहने का मन नही किया क्योंकि
वे जनाब कुछ सुनने के ‘मूड’ में ही नही
थे। इसीलिए हमने यह भी नही पूछा कि जिस धरती से विश्व के चार मुख्य धर्मों का जन्म
हुआ – हिंदू/ सनातन, जैन, बौद्ध और सिख
(और कितने ही छोटे धर्म और संप्रदाय) उसको एक से बाँधने का तुम्हारा तुक क्या है। और यह भी नही कहा कि भारत के महानतम शासकों में भी अग्रणीय
अशोक, कनिष्क एवं अकबर दूसरे धर्म के थे। इसीलिए (और ऐसे अनगिनत तथ्य हैं) हम ‘भारत को सदैव से हिंदू
राष्ट्र’ घोषित करने की सोच से विस्मित हैं।
अभी कुछ ही दिनों पहले रेलगाड़ी में यात्रा
करना था तो हमने समय काटने के लिए कुछ पत्रिकाएँ उठा लीं। एक पत्रिका (हमारे ख्याल
से फ्रंटलाइन) में लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार (58 मृत, बिहार 1997) में उच्च न्यायालय
के फैसले (जिसमें सारे आरोपियों को बरी कर दिया गया) और उसके बाद के हालात पर लेख था।
उसमें एक वाक्य ने हमें झकझोरा – बरी होने के बाद उस विशेष समुदाय के लोग पीड़ित समुदाय
के लोगों को धमकी देते रह रहें हैं – ‘हमने हमेशा राज किया है, हम हमेशा राज करेंगे।’ हमें लगा कि यह भी इतिहास की
मिथ्या प्रस्तुति मात्र ही है। लोग ‘हमेशा’ का अर्थ शायद नही जानते। और अगर यही ‘हमेशा’ रहा है तो शायद हमें भारतीय सभ्यता पर गौरवांवित होने के बारे में फिर से
सोचना पड़ेगा।
इतना लिखने का एक ही मकसद है। आने वाले समय
में सभी हमको अपना अपना इतिहास बताएँगे। जैसा कि पहले भी लिखा है उसमें कुछ सच होगा, कुछ झूठ
– लोग इस इतिहास का उपयोग अपना अपना लक्ष्य साधने के लिए करेंगे। इतिहास बहुत सशक्त
है क्योंकि वह हमें बीते हुए कल से सिखाता है; हमें एक नजरिया
देता है। पर आधा अधूरा या झूठा इतिहास उतना ही खतरनाक होता है क्योंकि वह हमारे नजरिए
को; हमारी सीख को गलत दिशा देता है। आने वाला समय कठिन है – हमें
कई महत्वपूर्ण फैसले लेने हैं। क्या हम मिलकर यह प्रण ले पाएँगे कि उन फैसलों को हम
आधे अधूरे या झूठे इतिहास पर आधारित नही करेंगे? - हम यह जानने
की कोशिश करेंगे कि सच्चा इतिहास क्या है।
P.S: आज जब इतिहास के बारे में लिख रहा हूँ तो
एक महान खिलाड़ी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखकर विदाई ले रहा है। हम सभी उसके
आभारी हैं और मान सकते हैं कि इतिहास भी जरूर आभारी होगा।
~शानु
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