Skip to main content

हम सोचते हैं (भाग 5) – नजरिया (जाखू प्रकरण)

हिमाचल के साथ हमारा रिश्ता पुराना है – हमने अपनी इंजीनियरिंग यहीं से की है। प्राचीन इतिहास और अद्भुत सुंदरता को अपने अंदर समेटे यह धरती मानव (तथा देवों) को सदियों से आकृष्ट करते आई है। जाहिर सी बात है कि हमारा परिवार भी इस देवभूमि को देखने को इच्छुक था। अभी हाल में ही उनकी यह इच्छा पूरी हो गई। हमारे पिता तो एक बार हमारे साथ हिमाचल आए भी थे पर हमारी माँ एवं भाई के लिए यह भूमि नई थी।

जो भी शिमला गए हैं वह इस बात को तो मानेंगे कि अनियंत्रित शहरीकरण के बावजूद इस शहर का अपना एक अलग आकर्षण है। कई रमणीय स्थानों के रहने के बावजूद जो दृष्य आपका स्वत: ही ध्यान खीच लेता है वह है पहाड़ के जंगलों से आपको झांकते हनुमान। 108 फीट ऊँचे हनुमान की यह मूर्ति जाखू पहाड़ी पर स्थित है। मिथको के अनुसार संजीवनी की खोज में निकले हनुमान ने इस पहाड़ी पर उतर जाखू ऋषि से दिशाज्ञान प्राप्त किया था। जाहिर सी बात है कि यह स्थान स्थानीय निवासियों, पर्यटकों एवं श्रधालुयों में समान रूप से प्रसिद्ध है।

यह वाकया जाखू में ही घटा। कुफरी और नालधेरा होते हुए जब हम जाखू पहुँचे तो हमारी गाड़ी के चालक ने कहा – यहाँ बंदरों से सावधान रहिएगा। उनका यहाँ कहर है। जो कोई भी वस्तु छीनी जा सकती है वह उसे छीन लेते हैं। बेहतर होगा की आप अपने जूते, घड़ियाँ, पर्स, चश्में आदि कार में ही रखें।
क्या वे इतने खतरनाक हैं? हमने पूछा।
अरे सर कभी कभी तो आपकी पूरी तलाशी ले लेंगे और आप कुछ न कर पाएँगे। वह मुस्कराया।

परेशानी न मोल लेने की सोच से हमने चालक की लगभग सारी बातें मानी – कुछ अपवाद जरूर रखें। जाखू में उस विशालकाय मूर्ति के अलावा दो मंदिर भी हैं। सो हमने प्रसाद आदि की खरीद के लिए अपना पर्स अपने साथ रखा और हमारे भाई ने अपना चश्मा। उसने सोचा कि भगवान के दरबार में जाने का फायदा ही क्या अगर उनके दर्शन में कठिनाई हो।

आपको यह ज्ञात होने में ज्यादा समय नही लगेगा कि जाखू के बंदर अपनी ख्याति के योग्य हैं। वे उन गिने चुने जीवों की सूची में शामिल किए जा चुके हैं जिन्हे हमने अपनी ख्याति पर पूरी तरह खरा उतरते देखा है। पहले मंदिर जाते समय ही हमें एक समूह मिला जो एक बंदर के हाथ में रखे जूते पाने का भरसक प्रयास कर रहा था। वह एक अद्भुत दृष्य था जो विस्मय और भय का भाव एक साथ ला रहा था। उस समूह को जूता तो मिला पर मंदिर के पुजारी के हस्तक्षेप के बाद। कुछ ही देर में जाखू का एक बंदर हमसे भी टकराया और जब तक हमने अपने हाथ में रखे प्रसाद का आखिरी हिस्सा तक उसे न पकड़ा दिआ उसने हमें अपने गिरफ्त में रखा। हमें अकस्मात लगा कि कहीं इनकी ट्रेनिंग सरकारी बाबुओं ने तो नहीं की। खैर आगे बढ़ते हैं।

हनुमान की मूर्ति और ऊँचाई पर है। वहाँ जाने में हमारा भाई सबसे आगे चल रहा था और हम उसके जरा सा ही पीछे। असंख्य बंदरों से पटे सीढ़ियों पर हम काफी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे कि तभी हमारे पास एक हलचल हुई। अचानक एक बंदर थिरका और, इससे पहले कि हम कुछ कह या कर पाते, हमारे भाई के ऊपर झपट्टा लगाते हुए उसके चश्में को अपने कब्जें में कर लिया। यह सब बिजली की गति से घटित हुआ। सामने कि टीले पर अपने हाथ में चश्मा लिए बैठा वह बंदर एकटक हमें देख रहा था मानों माखौल उड़ा रहा हो। हमारा भाई और हम हैरान थे और हताशा और अनुभवहीनता में हमने एक और गलती कर दीं। हमने देखा था कि कैसे पुजारी ने कुछ फेंकने पर बंदर ने वापस जूता फेंक दिया था – हमें बचपन में पढ़ी बंदरों और टोपियों की कहानी याद आ गई। आस पास पत्थरों के अलावा कुछ था नहीं तो हमनें उसी से किस्मत आजमा लीं – परिणाम यह हुआ कि बंदर फुर्र। हजारों की संख्या में उस बंदर को ढूढना असंभव हो गया था। इससे प्रकरण से हमें दो सीख मिली – एक कि अनुभवहीनता में लिए गए फैसले के गलत होने की संभावना ज्यादा होती है और दूसरा कि किताबी ज्ञान और व्यावाहारिक जीवन में फर्क हो सकता है। पर इस वाकये में सीख तो मिलनी ही थी – भगवान के दरबार में जो घटित है।

हम सभी हताश मन से शिखर पर पहुँचे – वह चश्मा भाई का प्रिय था, थोड़ा महंगा था पर सबसे जरूरी बात यह थी कि उसका दृष्टिसखा था। उँचाई पर हमने उस बंदर को खोजने की बहुत कोशिश की पर यह कार्य उतना ही कथिन था जितना कि धान के ढेर में सूई खोजना। एक ही परिस्थिति को झेलते चार लोग अलग-अलग तरीके से सोच रहें थे क्योंकि भूमिका अलग अलग थी। भाई व्यथित था, भगवान से नाराज – वह सोच रहा था कि उसने गलत काम नही किए तो भगवान की सभा में ही नुकसान क्यों हुआ। पापा और माँ को बेटे की चिंता थी तो उन्होनें प्रार्थना की कि माँगना तो बहुत कुछ होगा पर इस बार तो बस बेटे का चश्मा लौटाएँ ताकि उसकी श्रद्धा बनी रहें। और हम सोच रहे थे कि कैसे लौटते ही उसे एक बढ़ियाँ चश्मा दिलाना है।

भगवान की आराधना कर लौटते हुए कुछ और घटा जोकि काफी दिलचस्प है। कुछ लोग ऊपर आते हुए सभी से पूछ रहें थे – क्या आपमें से किसी का चश्मा बंदर लेकर भागा है? हममें आशा कि कुछ किरण जगी – हमारा चश्मा लेकर भागा है। पर क्यों?

नीचे एक बंदर बैठा है हाथ में चश्मा लिए। भाई और हम सरपट नीचे भागे – पहुँचे तो देखा कि वाकई एक बंदर हाथ में एक चश्मा लिए बैठा है और उसके आगे ठीक-ठाक भीड़ जमा है। हमने भाई से पूछा – वो तुम्हारा ही चश्मा है?
देखने में तो वही लग रहा है।
वो हमारा चश्मा है – कैसे मिलेगा? हमने एक दर्शक से पूछा।
पूरा पक्का तो नही है पर उन्हें प्रसाद फेंको तो वे चीजें लौटा देते हैं।

हम सीधे प्रसाद की दुकान पर भागे। उन्हे अपना दुखड़ा सुनाया और प्रसाद तो खरीदा ही, चश्मा वापस लेने में उनकी मदद भी माँगी – हमें इस तरह के लेन-देन के नियम नही पता। हमने सफाई दी।

खैर दुकानदार के प्रसाद फेंकते ही चश्मा उसके हाथ में आ गया। हम सभी की बौंछे खिली ही थी कि आवाज आई – एक्स्क्युज मी!! यह चश्मा मेरा है। हमने देखा तो एक हमारे उम्र का व्यक्ति हमसे चश्मा माँग रहा था। हमने भाई को चश्मा दिखाया तो उसने पुष्टि की कि चश्मा उसका नही है। दोनों चश्में काफी हद तक समान थे अत: उल्लास के क्षण में हम भेद न कर पाए। हमने चश्मा लौटाया और दुखी हो ही रहे थे कि भीड़ से आवाज आई – कहीं वह चश्मा तो आप लोगों का नही है?’ हमने देखा कि मंदिर के द्वार स्तंभ पर एक बंदर एक चश्में को अपनी मुठ्ठी में सहेजे बैठा है।

हमने प्रसाद वाले दुकानदार को देखा तो पाया कि वह उस व्यक्ति से बहस कर रहा था जिसे हमने कुछ देर पहले चश्मा दिया था। कारण जाना तो विस्मित हुए – दुकानदार के अनुसार हमारे द्वारे खरीदे गए प्रसाद के कारण उसका चश्मा मिला था अत: उसे हमें प्रसाद का पैसा लौटाना चाहिए पर वह व्यक्ति इस तथ्य से सहमत नही था। उस दिन एक और सीख मिली – आपके कारण किसी और का कार्य सिद्ध हो सकता है/ उसे श्रेय मिल सकता है और वह व्यक्ति आपके योगदान को पूरी तरीके से अनदेखा कर सकता है। अब या तो आप उस व्यक्ति को/ अपने भाग्य को कोसते हुए वहीं रह सकते हो या फिर अपने कार्य के साथ आगे बढ़ सकते हो। हमने दूसरा मार्ग चुना। दुकानदार को और प्रसाद के पैसे दिए और विनती की कि चश्मा दिला दें। इस बार फिर से प्रसाद फिंका और फिर से चश्मा उसके हाथ में आया। फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार चश्मा हमारे भाई का था। आश्चर्य इस बात का था कि इतनी देर अपने पास रखने के बाद भी बंदर ने उस चश्में को ज्यादा नुकसान नही पहुँचाया – बस थोड़े खुरचन के निशान थे। वह बंदर और भी तारीफ के काबिल है क्योंकि उसने नीचे आकर चश्में के मालिक का इंतजार किया – चाहे वह किसी भी लालसा में किया हो।   

यह बहुत ही दिलचस्प वाकया है जो शायद ही हममें से कोई भूलेगा। इस किस्से को मैंने जब भी सुनाया है तो अलग अलग प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। कोई इसे भगवान की लीला बोलता है तो कोई चमत्कार तो कोई आशीर्वाद। कोई बंदर की चतुराई की सराहना करता है तो कोई उस सिस्टम की निंदा जहाँ बंदरों को छीनने के लिए प्रेरित किया जाता है।

एक ही कहानी अलग अलग लोगों को अलग अलग तरीके से प्रभावित कर रही है – जब हमने सोचा तो पाया कि उन सभी का इस घटना को देखने का नजरिया अलग है। जीवन के हरेक पहलू के लिए यह सत्य है। लोग उसे अपने नजरिए से देखते हैं – यही कारण है कि जो आपके लिए ठीक है वह शायद मेरे लिए गलत। नजरिया बनता है अनुभव से, ज्ञान से, विचारधारा से, यहाँ तक की सुनी सुनाई बातों से भी। आज देश में नजरिए की लड़ाई है – नजरिए का एक वर्ग जो देश को आगे ले जाना चाहता है और दूसरा जोकि उसे कुछ अलग ही दिशा देना चाहता है। दोनों ही ओर काफी लोग हैं और वे उन सभी चीजों का प्रयोग करेंगे जोकि आपके नजरिए को एक रूप देने में सक्षम हों। अब आपको चुनना है कि आप किस तरफ जाएँगे।  


~शानु 

Comments

Popular posts from this blog

The Institute: Another Home Dark clouds gathered and decided to show their strength to the sun. As the sky turned dark and wind and rain joined the coalition of clouds, our cab raced through the streets of Calcutta. The sun was overpowered and I and my brother prayed to reach our destination before the rain hits the accelerator button. That was two years ago and I was on my way to join one of the premier institutes in India for my postgraduate studies. I was in awe with everything associated with the institute. At the same time I was a bit nervous and perhaps petrified with the thought of matching the wits of some of the best brains in the country for two years. My brother, on contrary, was happy, excited and perhaps proud of the achievement of his brother. After the drive of about an hour my brother pointed out “Look we have arrived.”. There was a pang within me as I smiled and watched nervously at the board of the institute. As we entered through the gate, the two large lakes on eit...
Banku and Bhootnath Authorspeak: I was going through my old files when I came across this one. I had written it long back when I saw ‘Bhootnath’ and happily forgot about it. Thus, unfortunately it never saw the Blogworld. This post has taken few potshots on some of the best people I have been with and I know that they won't mind this narration. Now that I am a little busy to write anything of significance this may act as filler. I do not know whether I will ever continue with the narration though. Year 2060: Banku and Bhootnath are sitting on a rooftop staring at the beautiful sky. The vast expanse of sky has them captivated when suddenly Banku is bugged by a childish curiosity. Banku: “Bhootnath, tell me how these stars are formed?” Bhootnath: (Obviously forgetting the reasons behind the formation of stars, fumbled to reply. You can not blame him. He is dead for 30 years and has not opened books since then. And tell me how many living people have any ...
Films of 2008 Part I: My top 10 Some films listed here may not be of Indian origin/ production but are relevant in Indian context. The ordering is in no particular order. You may rearrange them according to your preferences. A Wednesday: This film vents out the frustration of ‘Common Man’. Pitted against each other the two stalwarts of Indian film Industry, Naseeruddin Shah and Anupam Kher elevated the movie multifold. Jimmy Shergil shined in a brief role. First time director Neeraj Pandey, weaved an interesting tale into an engaging screenplay. The film had its share of flaws but it was able to highlight the message it wanted to deliver. Jodha Akbar: A magnum opus which could have been a classic was reduced to an above average cinematic experience by the dragging and long screenplay. But the movie had its moments. The sheer chemistry between the lead pair made the love story engaging and endearing. The opulent sets and clothes brought the desired period look. A R Rahma...