लीजिए भई , होली आ गई। जो हमें जानते हैं उन्हें पता है कि यह हमारा सबसे पसंदीदा त्योहार है। बचपन से ही इस त्योहार नें हमें अपने आकर्षणपाश में बाँध रखा है और अभी तक हमारा इससे मोहभंग नही हुआ है। हमारे ज्यादातर मुख्य त्योहार बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक हैं और होली कोई अपवाद नही है। जिन बंधुओ के लिए किवदंतियाँ/ मिथक (बहुतों के लिए इतिहास भी) कमजोर कड़ी है उनके लिए बता देते हैं कि होली का नाम ‘ होलिका ’ नामक राक्षसी से आया है। जब हम होलिका दहन मनाते हैं तो हम सांकेतिक रूप में होलिका रूपी दुष्टता को जलाते हैं। होली का त्योहार भक्त प्रह्लाद की भक्ति का ; उसे बचाने के लिए होलिका के नाश का एवं उसके पिता (और दुष्ट असुर राजा) हिरण्यकश्यप के अत्याचारी शासन के अंत का उत्सव है। पर यह उत्सव रंगों के साथ क्यों खेला जाता है ? भगवान राम जब अयोध्या वापस आए तब भी उत्सव मना पर वह प्रकाशोत्सव था रंगोत्सव नही। तो फिर होली पर रंग क्यों ? एक धारणा है कि होली में रंग का समागम भगवान कृष्ण ने किया – राधा एवं अन्य गोपिकाओं के साथ उनका रंगरास होली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। दरअसल कृष्ण अपने श्याम रंग से...