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Showing posts from November, 2013

हम सोचते हैं (भाग 6) – अपना अपना इतिहास

हम देख रहें हैं कि आजकल लोगों में इतिहास के प्रति रुझान बढ़ रहा है। एक हमारा समय था कि लगता था कि इतिहास से सिर्फ हमारा और कुछ गिने चुने लोगों का ही लगाव है। हमारा लगाव इस कदर था कि ग्यारहवीं का फार्म भरते तक पिताजी ने छूट दी थी कि आर्टस लें या साईंस (और इसके लिए हम उनके तहेदिल से शुक्रगुजार हैं)। पर हमने विज्ञान को चुना – सोचा इतिहास तो जो बनना था बन गया अब हमारे इतिहास बनाने का समय है। वैसे भी पिताजी हमेशा से चाहते थे (और शायद अभी भी चाहते हैं) कि उनका बेटा इतिहास रचें। इस क्षेत्र में हमें अपना जलवा दिखाना बाकी है पर हाल फिलहाल में जो घटित हो रहा है उससे हम बौखला से गए हैं। अगर देखा जाए तो बात कुछ भी नही है – एक व्यक्ति विशेष अपने प्रियजनों एवं शुभचिंतकों की अभिलाषाओं को ध्यान में रखते हुए नया इतिहास रचने चला है। हमें अभी तक इतिहास पर उनके वक्तव्यों को सुनने का सौभाग्य तो प्राप्त नही हुआ पर हमने पढ़ा जरूर है। पढ़कर लगा कि उन्होनें असली मुद्दा पकड़ लिया है – इतिहास कभी भी आम वर्ग में प्रचलित इसलिए नही हुआ क्योंकि वह सुरुचिकर नही रहा। अगर लोगों को इतिहास पढ़ाना है तो उसे सुरुचिकर...