सुबह घर से बाहर निकले
तो हवा को बदला हुआ पाया – आज वह मलिन नहीं थी; न ही दम घोटने को लालायित। हमें आश्चर्य हुआ; कारण जानने की इच्छा भी
हुई। उसे रोक कर पूछा – ‘ओ बावली, क्या
हो गया है तुझे? आज इतनी निर्मल, इतनी
स्वच्छ कैसे है? आज मुझे परेशान करने का मन नही कर रहा?’
इसपर वह मुस्कराई, इठलाई और कहा – ‘अब से तो मैं ऐसी ही रहूँगी। मसीहा का आदेश है। अच्छे दिन आ
गए हैं।’ इतना बोल वह चलते बनी पर हमें स्तब्ध कर दिया। ‘अच्छे दिनों’ की इतने जल्दी आने की उम्मीद हमें कतई नही थी। संशय में तो
हम थे पर होंठों पर एकाएक हँसी आ गई। ख्याल में आया कि चलो इस लहर में कुछ तो ठीक
हुआ।
कॉलोनी में शायद ही
कोई हमें पहचानता होगा (सुबह निकलकर देर रात लौटने वाले का सामाजिक अस्तित्व नगण्य
होता है) पर हम अनेकों से वाकिफ है। बगलवाली आँटी जो हर रोज सड़क पर कूड़ा फेंकती थी, आज डस्टबीन का प्रयोग करते
नजर आईं। हमसे ज्यादा आश्चर्यचकित तो कूड़ावाला था जिसे वे मंद मंद धमकी दे रहीं थी–
‘अगर आज से इस पूरी कॉलोनी में एक जगह भी कचरा मिला तो तेरी खैर नही। मसीहा के
आदेश के उल्लंघन में तुझे पिटवा दूँगी।’ कूड़ावाले ने जहाँ हामी में सर भर हिलाया वहीं
बगल से गुजर रहे शर्माजी ने पान की पींक अंदर घुटक ली।
ऑटो स्टैंड तक
पहुँचते पहुँचते हमें लगने लगा था कि अच्छे दिन वाकई आ गए हैं। एक ऑटो वाले से
पूछा – ‘64?’
‘चलेंगे। 60 रूपए लगेंगे।‘ हमें हर रोज 80 रूपए में
जाने में जद्दोजहद करनी पड़ती थी – अचानक 60 सुनकर मन भ्रमित हो गया। हमारे मुख पर
हर्ष और विस्मय मिश्रित कुछ अजीब से भाव आए होंगे क्योंकि ऑटो वाला बोला – ‘आज से सिर्फ वाजिब भाड़ा लगेगा सर। अच्छे दिन आ गए हैं।’
रोड पर ट्रैफिक
देखकर मन प्रफुल्लित हो गया – सभी नियमों का पालन हो रहा था। न कोई बत्ती तोड़कर
भाग रहा था और न ही कारों में काले शीशे चढ़े हुए थे। दोपहियों पर न सिर्फ चालक
बल्कि सहयात्री भी हेलमेट डाले हुए मिले।
ऑफिस पहुँचा तो सभी
नीचे एकत्रित थे। हमने पूछा – ‘माजरा क्या है?’
‘प्रण लेना है।’
‘कैसा प्रण?’
‘पता चलेगा।’
चेयरमैन साहब ने प्रण
दिलवाया। लंबी सूची थी –
‘हम अब अपना सारा काम समय से करेंगे।’
‘हम समय से ऑफिस आएँगे और समय से ही निकल जाएँगे।’
‘ग्राहक देवतुल्य है - उसकी सेवा हमारे लिए सर्वोपरि है।’ फलाँ फलाँ करते करते 10-15
प्रण हमसे दिलवा दिए गए। हरेक प्रण पर सिर्फ यही प्रश्न कौंधता था – यह तो सदैव ही
होना चाहिए था; आज से ही क्यों? हिचकते हिचकते हमने मानव संसाधन प्रमुख से पूछ ही लिया – ‘सर, ऐसा आज से ही क्यों?’
गाल थपथपाते हुए उन्होने
जवाब दिया – ‘क्योंकि, मेरे बच्चे, आज से अच्छे दिनों की शुरुआत हुई है।’
क्योंकि प्रण लिया था
इसलिए शाम में हम समय से ही निकले। बहुत दिनों बाद अस्तचलगामी सूर्य के दर्शन हुए।
मौसम सुहावना हो चला था – अरसे से चिलचिलाती गर्मी से परेशान धरती पर आज मौसम ने नजरें
इनायत कर दी थी। मौसम का असर था या क्या पता नहीं पर मन हुआ कि आज ‘शेयर्ड ऑटो’ से चलें। जो ‘शेयर्ड ऑटो’ से रोजाना चलते हैं वे उस यात्रा
की व्यथा जानते हैं पर ‘अच्छे दिनों’ का संदेश
शायद वहाँ भी पहुँच चुका था। ऑटो चालक लोगों को ठूँस नहीं रहें थे (इस कारण हमें ऑटो
मिलने में कुछ समय अवश्य लगा); सभ्य भाषा का प्रयोग हो रहा था; महिलाओं को चालक एवं सहयात्री दोनों ही इज्जत दे रहे थे। लगा ही नही कि जैसे
हम भारत के किसी शहर में हों।
रात में बाहर खाने का मन हुआ। मित्रों के साथ
जब हम रेस्त्रां पहुँचे तो हंगामा मचा हुआ था। एक अंकल वहाँ के कर्मचारियों पर भड़के
हुए थे – ‘ऐसा नही चलेगा। अब तो बिल्कुल नहीं। मैं आपको पैसा दे रहा हूँ –
भीख नहीं माँग रहा। आधे घंटे से उपर हो गए और अभी तक कुछ नहीं आया। यह बैरा बुलाने
पर भी इधर आता नहीं है। ऐसा नही चलेगा।’ दिन के अंत में यह घटना
पूरे दिन के अनुभव से अलग थी – लगा कि अच्छे दिनों के पूरी तरह से आने में समय लगेगा।
तभी रेस्त्रां के संगीत में अचानक बदलाव हुआ और ‘मसीहा’ की 3D होलोग्राफिक छवि सामने उभरी – उस छवि ने अंकल
से हाथ जोड़ माफी मांगी और फिर रेस्त्रां के कर्मचारियों को जमकर फटकार लगाई; अच्छे दिनों का महत्व और मकसद समझाया और फिर गायब हो गई। सभी मौजूद लोगों
के चेहरे पर आश्चर्य और खुशी के मिश्रित भाव थे। छवि के गायब होने के मिनटों में ही
अंकल को उनके ऑर्डर के अनुसार भोजन परोस दिया गया। अंकल इतने गदगद दिख रहे थे कि हमें
शक था कि वह कुछ कौर से ज्यादा नही खा पाएंगे।
लौटते वक्त मिथिलेश ने कहा – ‘अगर यह
आने वाले दिनों का परिचय है तो वे दिन अच्छे नही बहुत अच्छे होने वाले हैं।’
P.S: हमें लगता है कि हमारी बहुत सारी कठिनाईयों/परेशानियों
को हम खुद पालें हुएँ हैं। वे उसी दिन चलीं जाएँगी जिस दिन हम अपनी सोच बदल लें। जिस
दिन वह सोच बदलनी शुरु होगी उसी दिन से अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाएगी। रही बात ‘प्रचारित अच्छे दिनों’ के आने की – तो उस समय व्यक्ति
थोड़ा विचलित हो जाता है जब मौसम के बदलाव को भी लोग एक व्यक्ति/ सरकार से जोड़ने लगते
हैं।
Comments